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13ए की कमजोरियों और ताकतों को अवश्य देखें

संदर्भ:

भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला की श्रीलंका की आधिकारिक यात्रा और श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे के साथ बैठक।

विवरण:

द्विपक्षीय परियोजनाएं:

बैठक के दौरान द्विपक्षीय परियोजनाओं में तेजी लाने की जरूरत पर जोर दिया गया।
यह द्विपक्षीय परियोजनाओं पर श्रीलंका के रुख को लेकर संबंधों में काफी तनाव के बीच आया है।
श्रीलंका ने 2019 में भारत और जापान के साथ हस्ताक्षरित कोलंबो पोर्ट पर एक त्रिपक्षीय ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) परियोजना को एकतरफा रद्द कर दिया था।
भारत ने श्रीलंका के आर्थिक और विकासात्मक क्षेत्रों में चीन की बढ़ती उपस्थिति के बीच श्रीलंका में भारत समर्थित विकास परियोजनाओं की “धीमी गति” पर भी चिंता जताई थी।
द्वीप राष्ट्र के पूर्वी सिरे पर त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म का विकास रुक गया है।

श्रीलंका के संविधान का 13वां संशोधन:

भारत ने संविधान के 13वें संशोधन के प्रावधानों के पूर्ण कार्यान्वयन का आह्वान किया है, जिसमें शक्तियों का हस्तांतरण और प्रांतीय परिषद चुनाव जल्द से जल्द कराना शामिल है।
श्रीलंका के संविधान में तेरहवां संशोधन 1987 में पारित श्रीलंका के संविधान में एक संशोधन है, जिसने श्रीलंका में प्रांतीय परिषदों का निर्माण किया। 13 वां संशोधन द्वीप के नौ प्रांतों को नियंत्रित करने के लिए स्थापित प्रांतीय परिषदों को शक्ति हस्तांतरण के एक उपाय को अनिवार्य करता है।
यह जुलाई 1987 के भारत-लंका समझौते का परिणाम है, जिस पर तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी और राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे, श्रीलंका के जातीय संघर्ष को हल करने के प्रयास में, जो सशस्त्र के बीच एक पूर्ण गृहयुद्ध में बदल गया था। बलों और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, जिसने तमिलों के आत्मनिर्णय के लिए संघर्ष का नेतृत्व किया और एक अलग राज्य की मांग की।
श्रीलंका के राष्ट्रपति ने श्रीलंका के संविधान में 13वें संशोधन की कमजोरियों और ताकत पर अधिक सूक्ष्म विचार-विमर्श का आह्वान किया है।

क्षेत्रीय सुरक्षा:

भारत ने इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा पर चिंता जताई है, विशेष रूप से श्रीलंका के अधिकारियों द्वारा हाल ही में नशीले पदार्थों के बड़े पैमाने पर पकड़े जाने के मद्देनजर। भारत ने श्रीलंका के इस क्षेत्र में मादक पदार्थों की तस्करी के लिए एक माध्यम बनने पर चिंता जताई है, जिससे भारत सहित इस क्षेत्र के लिए गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं।
श्रीलंका की शांति और सुरक्षा के लिए कोई भी खतरा भारत सहित इस क्षेत्र के लिए खतरा है।
श्रीलंका के राष्ट्रपति ने हिंद महासागर को शांति क्षेत्र घोषित करने के लिए श्रीलंका के तत्कालीन प्रधान मंत्री सिरिमावो भंडारनायके द्वारा 1971 के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने में भारत का समर्थन मांगा है।

निष्कर्ष:

भारत और श्रीलंका के बीच 1960 और 1970 के दशक के संबंधों की भावना को पुनर्जीवित करने की इच्छा की श्रीलंकाई राष्ट्रपति की अभिव्यक्ति एक स्वागत योग्य विकास है। दोनों देशों को महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को उच्च स्तर पर ले जाने के लिए आवश्यक अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय करने की आवश्यकता है।

Swachh Bharat Mission-Urban 2.0

प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 और अमृत 2.0 का शुभारंभ किया

“स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0′ का लक्ष्य शहरों को पूरी तरह से कचरा-मुक्त बनाना है”

“मिशन अमृत के अगले चरण में देश का लक्ष्य है: ‘सीवेज और सेप्टिक प्रबंधन में सुधार, हमारे शहरों को जल-सुरक्षित शहर बनाना और यह सुनिश्चित करना कि कहीं भी कोई सीवेज का गंदा नाला हमारी नदियों में आकर न गिरे”

“स्वच्छ भारत अभियान और अमृत मिशन की यात्रा में मिशन भी है, मान भी है, मर्यादा भी है, एक देश की महत्वाकांक्षा भी है और मातृभूमि के लिए अप्रतिम प्रेम भी है ”

“बाबासाहेब अंबेडकर शहरी विकास को असमानता दूर करने का बहुत बड़ा माध्यम मानते थे…. स्वच्छ भारत मिशन और अमृत मिशन का अगला चरण बाबासाहेब के सपनों को पूरा करने की दिशा में एक अहम कदम सिद्ध होगा”

स्वच्छता हर किसी का, हर दिन, हर पखवाड़े, हर साल, पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला महाअभियान है, स्वच्छता जीवनशैली है, स्वच्छता जीवन मंत्र है।”

“2014 में, 20 प्रतिशत से भी कम कचरे को प्रोसेस किया जाता था, आज हम दैनिक कचरे के लगभग 70 प्रतिशत को प्रोसेस कर रहे हैं, अब, हमें इसे 100 प्रतिशत तक ले जाना है”
प्रविष्टि तिथि: 01 OCT 2021 1:28PM by PIB Delhi
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 और अटल कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन मिशन 2.0 का शुभारंभ किया। इस अवसर पर केन्द्रीय मंत्री श्री हरदीप सिंह पुरी, श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, श्री प्रहलाद सिंह पटेल, श्री कौशल किशोर, श्री श्री बिश्वेश्वर टुडू, राज्यों के मंत्री, महापौर, शहरी स्थानीय निकायों के अध्यक्ष और नगर आयुक्त उपस्थित थे।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि 2014 में, देशवासियों ने भारत को खुले में शौच मुक्त – ओडीएफ बनाने का संकल्प लिया था और उन्होंने 10 करोड़ से अधिक शौचालयों के निर्माण के साथ इस संकल्प को पूरा किया। प्रधानमंत्री कहा कि अब ‘स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0’ का लक्ष्य शहरों को कचरा मुक्त यानी कचरे से पूरी तरह से मुक्त बनाना है। प्रधानमंत्री ने मिशन अमृत के अगले चरण में देश के लक्ष्य को रेखांकित करते हुए कहा, ‘सीवेज और सेप्टिक प्रबंधन में सुधार, हमारे शहरों को जल-सुरक्षित शहर बनाना और यह सुनिश्चित करना कि कहीं भी कोई सीवेज का गंदा नाला हमारी नदियों में आकर न गिरे।‘

प्रधानमंत्री ने शहरी उत्थान और स्वच्छता से जुड़ी बदलाव की सफलताओं को महात्मा गांधी को समर्पित किया। उन्होंने कहा कि यह सारे मिशन महात्मा गांधी की प्रेरणा का परिणाम हैं और उनके आदर्शों से ही साकार हो रहे हैं। उन्होंने शौचालयों के निर्माण से माताओं और बेटियों के जीवन में आई सुविधा का भी उल्लेख किया।

प्रधानमंत्री ने राष्ट्र की भावना को सलाम करते हुए कहा कि स्वच्छ भारत अभियान और अमृत मिशन की अब-तक की यात्रा वाकई हर देशवासी को गर्व से भर देने वाली है। उन्होंने इस भावना को समाहित करते हुए कहा, “इसमें मिशन भी है, मान भी है, मर्यादा भी है, एक देश की महत्वाकांक्षा भी है और मातृभूमि के लिए अप्रतिम प्रेम भी है।”

अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर, जहां यह कार्यक्रम चल रहा था, उसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि बाबा साहेब, शहरी विकास को असमानता दूर करने का बहुत बड़ा माध्यम मानते थे। बेहतर जीवन की आकांक्षा में गांवों से बहुत से लोग शहरों की तरफ आते हैं। हम जानते हैं कि उन्हें रोजगार तो मिल जाता है लेकिन उनका जीवन स्तर गांवों से भी मुश्किल स्थिति में रहता है। ये उन पर एक तरह से दोहरी मार की तरह होता है। एक तो घर से दूर, और ऊपर से ऐसी स्थिति में रहना। उन्होंने कहा कि इस हालात को बदलने पर, इस असमानता को दूर करने पर बाबा साहेब का बड़ा जोर था। स्वच्छ भारत मिशन और मिशन अमृत का अगला चरण, बाबा साहेब के सपनों को पूरा करने की दिशा में भी एक अहम कदम है।

उन्होंने कहा कि सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के साथ सबका प्रयास स्वच्छता अभियान के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, स्वच्छता के संबंध में जनभागीदारी के स्तर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें इस बात से बहुत खुश होती है कि स्वच्छता अभियान को मजबूती देने का बीड़ा देश की आज की पीढ़ी ने उठाया हुआ है। उन्होंने कहा कि टॉफी के रैपर अब जमीन पर नहीं फेंके जाते, बल्कि पॉकेट में रखे जाते हैं। छोटे-छोटे बच्चे, अब बड़ों को टोकते हैं कि गंदगी मत करिए। प्रधानमंत्री ने कहा, “हमें ये याद रखना है कि ऐसा नहीं कि स्वच्छता, एक दिन का, एक पखवाड़े का, एक साल का या कुछ लोगों का ही काम है। स्वच्छता हर किसी का, हर दिन, हर पखवाड़े, हर साल, पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला महाअभियान है। स्वच्छता जीवनशैली है, स्वच्छता जीवन मंत्र है।” प्रधानमंत्री ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात की पर्यटन क्षमता को बढ़ाने के अपने प्रयासों को याद किया जहां उन्होंने निर्मल गुजरात कार्यक्रम द्वारा स्वच्छता की तलाश को एक जन आंदोलन में बदल दिया था।

स्वच्छता के अभियान को अगले स्तर तक ले जाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भारत हर दिन करीब एक लाख टन वेस्ट, प्रोसेस कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘2014 में जब देश ने अभियान शुरू किया था तब देश में हर दिन पैदा होने वाले वेस्ट का 20 प्रतिशत से भी कम प्रोसेस होता था। आज हम लगभग 70 प्रतिशत डेली वेस्ट प्रोसेस कर रहे हैं। अब हमें इसे 100 प्रतिशत तक लेकर जाना है।’ प्रधानमंत्री ने शहरी विकास मंत्रालय के लिए आवंटन में वृद्धि के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि 2014 से पहले के 7 वर्षों में मंत्रालय को लगभग 1.25 लाख करोड़ रुपये दिए गए थे, जबकि 2014 के बाद 7 वर्षों में लगभग 4 लाख करोड़ रुपये मंत्रालय के लिए आवंटित किए गए।

देश में शहरों के विकास के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी लगातार बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अभी हाल में ही देश ने राष्ट्रीय ऑटोमोबाइल स्क्रैपेज पॉलिसी लॉन्च की है। उन्होंने कहा कि इस नई स्क्रैपिंग पॉलिसी ने वेस्ट टू वैल्थ अभियान और सर्कुलर इकोनॉमी को मजबूती प्रदान की।

प्रधानमंत्री ने शहरी विकास से संबंधित कार्यक्रम में रेहड़ी-पटरी वालों और फेरीवालों को किसी भी शहर का सबसे महत्वपूर्ण भागीदार बताया। प्रधानमंत्री ने दोहराया कि पीएम स्वनिधि योजना इन लोगों के लिए आशा की एक नई किरण बनकर आई है। स्वनिधि योजना के तहत 46 से अधिक रेहड़ी-पटरी वालों ने लाभ उठाया है और 25 लाख लोगों को 2.5 हजार करोड़ रुपये मिले हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये विक्रेता डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दे रहे हैं और अपने ऋणों का भुगतान करने का बहुत अच्छा रिकॉर्ड बनाए हुए हैं। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों ने इस योजना को लागू करने में अग्रणी भूमिका निभाई है।

‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई)’ योजना

सरकार ने वस्‍त्र उद्योग के लिए ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई)’ योजना को मंजूरी दी; इस कदम से भारत को वैश्विक वस्त्र व्यापार में एक बार फिर से अग्रणी बनने में मदद मिलेगी

व्यापक अर्थव्यवस्था का लाभ उठाते हुए यह योजना भारतीय कंपनियों को वैश्विक विजेता के तौर पर उभरने में मदद करेगी

प्रत्‍यक्ष रूप से 7.5 लाख से भी अधिक लोगों के लिए अतिरिक्त रोजगारों के साथ-साथ सहायक गतिविधियों के लिए भी कई लाख और रोजगार सृजित करने में मदद मिलेगी

इस योजना से बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी का मार्ग भी प्रशस्त होगा

इस उद्योग को पांच साल में 10,683 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया जाएगा

उम्मीद है कि इस योजना के परिणामस्वरूप 19,000 करोड़ रुपये से भी अधिक का नया निवेश होगा और पांच वर्षों में 3 लाख करोड़ रुपये से भी ज्‍यादा का अतिरिक्त उत्पादन कारोबार होगा

आकांक्षी जिलों और टियर 3/4 शहरों में निवेश को उच्च प्राथमिकता

इस योजना से विशेषकर गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं ओडिशा जैसे राज्यों पर सकारात्मक असर होगा
प्रविष्टि तिथि: 08 SEP 2021 2:39PM by PIB Delhi
‘आत्मनिर्भर भारत’ के विजन की दिशा में एक और अहम कदम आगे बढ़ाते हुए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 10,683 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय के साथ एमएमएफ परिधान, एमएमएफ फैब्रिक और तकनीकी वस्त्रों के 10 खंडों/उत्पादों हेतु वस्त्र उद्योग के लिए ‘पीएलआई योजना’ को मंजूरी दे दी है। वस्त्र उद्योग के लिए पीएलआई के साथ-साथ आरओएससीटीएल, आरओडीटीईपी या रोडटेप और इस क्षेत्र में सरकार के अन्य उपायों जैसे कि प्रतिस्पर्धी कीमतों पर कच्चा माल उपलब्ध कराने, कौशल विकास, इत्‍यादि से वस्‍त्र उत्‍पादन में एक नए युग की शुरुआत होगी।

वस्त्र उद्योग के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये के परिव्यय वाली पीएलआई योजना केन्द्रीय बजट 2021-22 में 13 क्षेत्रों के लिए पहले घोषित की गई पीएलआई योजनाओं का हिस्सा है। 13 क्षेत्रों के लिए पीएलआई योजनाओं की घोषणा के साथ, भारत में न्यूनतम उत्पादन पांच वर्षों में लगभग 37.5 लाख करोड़ रुपये का होगा और पांच वर्षों में कम से कम लगभग 1 करोड़ रोजगार पैदा होने की उम्मीद है।

इस योजना से देश में अधिक मूल्य वाले एमएमएफ फैब्रिक, गारमेंट्स और तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन को काफी बढ़ावा मिलेगा। इसके तहत प्रोत्साहन संबंधी संरचना कुछ इस प्रकार से तैयार की गई है जिससे उद्योग इन खंडों या क्षेत्रों में नई क्षमताओं में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होगा। ऐसे में बड़ी तेजी से उभरते अधिक मूल्य वाले एमएमएफ सेगमेंट को काफी बढ़ावा मिलेगा जो रोजगार एवं व्यापार के नए अवसर सृजित करने में कपास और अन्य प्राकृतिक फाइबर आधारित वस्‍त्र उद्योग के प्रयासों में पूरक के तौर पर व्‍यापक योगदान करेगा। इसके परिणामस्वरूप भारत को वैश्विक वस्‍त्र व्यापार में अपना ऐतिहासिक प्रभुत्‍व फि‍र से हासिल करने में काफी मदद मिलेगी।

तकनीकी वस्त्र दरअसल नए जमाने का वस्‍त्र है, जिसका उपयोग अवसंरचना, जल, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, रक्षा, सुरक्षा, ऑटोमोबाइल, विमानन सहित अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में होने से अर्थव्यवस्था के इन सभी क्षेत्रों में दक्षता काफी बढ़ जाएगी। सरकार ने इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास संबंधी प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए अतीत में एक ‘राष्ट्रीय तकनीकी वस्‍त्र मिशन’ भी शुरू किया है। पीएलआई इस खंड में निवेश आकर्षित करने में और भी अधिक मदद करेगी।

प्रोत्साहन संबंधी संरचना के अलग-अलग सेट को देखते हुए दो प्रकार के निवेश संभव हैं। कोई भी व्यक्ति (जिसमें फर्म/कंपनी शामिल है), जो निर्धारित खंडों (एमएमएफ फैब्रिक्स, गारमेंट) के उत्‍पादों और तकनीकी वस्‍त्र के उत्पादों के उत्पादन के लिए संयंत्र, मशीनरी, उपकरण और निर्माण कार्यों (भूमि और प्रशासनिक भवन की लागत को छोड़कर) में न्यूनतम 300 करोड़ रुपये निवेश करने को तैयार है, वह इस योजना के पहले भाग में भागीदारी के लिए आवेदन करने का पात्र होगा। दूसरे भाग में, कोई भी व्यक्ति (जिसमें फर्म/कंपनी शामिल है), जो न्यूनतम 100 करोड़ रुपये निवेश करने का इच्छुक है, वह योजना के इस भाग में भागीदारी के लिए आवेदन करने का पात्र होगा। इसके अलावा आकांक्षी जिलों, टियर 3, टियर 4 शहरों या कस्बों, और ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता दी जाएगी और इस प्राथमिकता के मद्देनजर इस उद्योग को पिछड़े क्षेत्र में जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इस योजना से विशेषकर गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा इत्‍यादि राज्यों पर सकारात्मक असर होगा।

यह अनुमान है कि पांच वर्षों की अवधि में ‘वस्‍त्र उद्योग के लिए पीएलआई योजना’ से 19,000 करोड़ रुपये से भी अधिक का नया निवेश होगा, इस योजना के तहत 3 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का संचयी कारोबार होगा, और इस सेक्‍टर या क्षेत्र में 7.5 लाख से भी अधिक लोगों के लिए अतिरिक्त रोजगारों के साथ-साथ सहायक गतिविधियों के लिए भी कई लाख और रोजगार सृजित होंगे। वस्‍त्र उद्योग मुख्य रूप से महिलाओं को रोजगार देता है, अत: यह योजना महिलाओं को सशक्त बनाएगी और औपचारिक अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी बढ़ाएगी।

Source : PIB

भारत, ऑस्ट्रेलिया ने नौसेना से नौसेना वार्ता के लिए ‘संदर्भ की शर्तों’ पर हस्ताक्षर किए

भारतीय नौसेना और ऑस्ट्रेलियाई नौसेना ने ‘भारत-ऑस्ट्रेलिया नौसेना से नौसेना संबंध के लिए संयुक्त मार्गदर्शन’ दस्तावेज़ के ढांचे के तहत नौसेना से नौसेना वार्ता के संचालन के लिए ‘संदर्भ की शर्तों’ (टीओआर) पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय नौसेना द्वारा किसी भी देश के साथ हस्ताक्षरित यह पहला ऐसा दस्तावेज है।
दस्तावेज़ ने द्विपक्षीय सहयोग के मार्गदर्शन के लिए नौसेना से नौसेना वार्ता को प्रमुख माध्यम के रूप में स्थापित किया।
दस्तावेज़ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए साझा प्रतिबद्धता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण होगा।
दस्तावेज़ के मुख्य आकर्षण में हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (आईओएनएस), पश्चिमी प्रशांत नौसेना संगोष्ठी (डब्ल्यूपीएनएस) और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) सहित क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मंचों में घनिष्ठ सहयोग शामिल था।

‘मातृ, बाल कुपोषण का उच्च स्तर भारत में

संदर्भ:

भारत में मातृ एवं शिशु अल्पपोषण के उच्च स्तर पर यूनिसेफ के पोषण प्रमुख की टिप्पणी।

अवलोकन/टिप्पणियां:

यूनिसेफ के पोषण प्रमुख अर्जन डी वाग्ट के अनुसार, COVID-19 ने कुपोषण के बढ़ने के जोखिम को बढ़ा दिया है।
जबकि भारत ने हाल के दशकों में आर्थिक और मानव विकास में प्रभावशाली लाभ अर्जित किया है, देश में उच्च स्तर का मातृ और शिशु कुपोषण जारी है।
भारत में बच्चों का भविष्य, COVID-19 को नियंत्रित करना और कुपोषण को समाप्त करना भी उतना ही महत्वपूर्ण और जरूरी है।
कुपोषण पर डेटा:

व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (सीएनएनएस) और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (एनएफएचएस), बताते हैं कि इसके बारे में:
भारत में पांच साल से कम उम्र के एक तिहाई बच्चे अविकसित हैं।
उनमें से एक तिहाई कम वजन के हैं।
10 में से लगभग दो बच्चे पोषक रूप से बर्बाद हो जाते हैं।
कई बच्चे मल्टीपल एंथ्रोपोमेट्रिक डेफिसिट से पीड़ित हैं।
सीएनएनएस अधिक वजन, मोटापे और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की उभरती समस्याओं पर भी प्रकाश डालता है।
COVID-19 का प्रभाव:

स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाएं, जैसे आंगनवाड़ी केंद्र, पोषण पुनर्वास केंद्र, और ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण दिवस (वीएचएसएनडी) बाधित हो गए थे।
स्कूलों में बच्चों को आयरन और फोलिक एसिड की गोलियों का वितरण काफी कम कर दिया गया था, और स्कूलों में पोषण पर जागरूकता अभियान निलंबित कर दिया गया था।
मार्च 2018 में पोषण अभियान के शुभारंभ ने पोषण पर राष्ट्रीय विकास के एजेंडे पर फिर से ध्यान केंद्रित किया। हालांकि, महामारी के साथ, कुपोषण बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है, और अतीत में की गई प्रगति के कुछ हिस्से पूर्ववत हो सकते हैं।
जैसे-जैसे महामारी की अवधि लंबी होगी, खाद्य असुरक्षा और पोषण संबंधी चुनौतियां भी तेज होंगी।
महामारी से उत्पन्न खाद्य असुरक्षा के कारण परिवार कम पोषक मूल्य वाले सस्ते भोजन की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे बच्चों के संज्ञानात्मक विकास पर दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
COVID-19 से संबंधित प्राथमिकताएं पोषण और पोषण सुरक्षा प्रतिक्रियाओं के वितरण और वित्तपोषण के लिए खतरा हो सकती हैं।
आगे का रास्ता:

ये ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

खाद्य, आय और पोषण सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए राष्ट्रीय से लेकर जिले तक सभी स्तरों पर मजबूत नेतृत्व आवश्यक है।
दो साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और किशोर लड़कियों पर विशेष ध्यान देने के साथ, आवश्यक साक्ष्य-आधारित पोषण सेवाओं की निर्बाध, सार्वभौमिक, समय पर और उच्च गुणवत्ता वाली कवरेज सुनिश्चित की जानी चाहिए, जो कि महत्वपूर्ण विकास अवधि हैं।
महामारी COVID-19 दिशानिर्देशों और सेवा वितरण तंत्र में नवाचारों के अनुकूल रणनीतियों की मांग करती है।
उच्च प्रभाव वाले हस्तक्षेपों के वितरण को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त वित्तपोषण की आवश्यकता है, और विशेष रूप से कमजोर जनसंख्या समूहों के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।
स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे पोषण को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाले बहुक्षेत्रीय हस्तक्षेपों को प्रभावी ढंग से वितरित करने की आवश्यकता है। प्रवासी मजदूरों और शहरी गरीबों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
पोषण को विकास के प्रमुख संकेतक के रूप में बनाए रखने की आवश्यकता है।

केरल में चमगादड़ के नमूनों में मिले निपाह एंटीबॉडी

संदर्भ:

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी), पुणे द्वारा केरल के दो जिलों से एकत्र किए गए बल्ले के नमूनों में निपाह वायरस एंटीबॉडी (आईजीजी एंटीबॉडी) का पता चला था, जहां निपाह संक्रमण की पुष्टि हुई थी।

निपाह क्यों है चिंता का विषय?

निपाह वायरस एक जूनोटिक वायरस है (यह जानवरों से मनुष्यों में फैलता है – जैसे चमगादड़ या सूअर) और दूषित भोजन के माध्यम से या सीधे लोगों के बीच भी फैल सकता है।
पटरोपोडिडे परिवार के फल चमगादड़ निपाह वायरस के प्राकृतिक मेजबान हैं।
निपाह वायरस (एनआईवी) को “अत्यधिक रोगजनक पैरामाइक्सोवायरस” के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
यद्यपि निपाह वायरस ने एशिया में केवल कुछ ज्ञात प्रकोपों ​​​​का कारण बना है, यह जानवरों की एक विस्तृत श्रृंखला को संक्रमित करता है और लोगों में गंभीर बीमारी और मृत्यु का कारण बनता है, जिससे यह सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय बन जाता है।
संक्रमित लोगों में, यह स्पर्शोन्मुख (सबक्लिनिकल) संक्रमण से लेकर तीव्र श्वसन बीमारी और घातक एन्सेफलाइटिस तक कई बीमारियों का कारण बनता है। मामले की मृत्यु दर 40% से 75% अनुमानित है।
लोगों या जानवरों के लिए कोई इलाज या टीका उपलब्ध नहीं है। मनुष्यों के लिए प्राथमिक उपचार सहायक देखभाल है।
वर्तमान साक्ष्यों को देखते हुए, यह तार्किक रूप से निष्कर्ष निकाला गया है कि कोझीकोड में निपाह का प्रकोप चमगादड़ से उत्पन्न हुआ था, भले ही अधिकारी अभी भी अंधेरे में हैं कि चमगादड़ से मनुष्यों में वायरस के संचरण का मार्ग क्या है।

2. ‘मातृ, बाल कुपोषण का उच्च स्तर भारत में जारी है’

संदर्भ:

भारत में मातृ एवं शिशु अल्पपोषण के उच्च स्तर पर यूनिसेफ के पोषण प्रमुख की टिप्पणी।

अवलोकन/टिप्पणियां:

यूनिसेफ के पोषण प्रमुख अर्जन डी वाग्ट के अनुसार, COVID-19 ने कुपोषण के बढ़ने के जोखिम को बढ़ा दिया है।
जबकि भारत ने हाल के दशकों में आर्थिक और मानव विकास में प्रभावशाली लाभ अर्जित किया है, देश में उच्च स्तर का मातृ और शिशु कुपोषण जारी है।
भारत में बच्चों का भविष्य, COVID-19 को नियंत्रित करना और कुपोषण को समाप्त करना भी उतना ही महत्वपूर्ण और जरूरी है।
कुपोषण पर डेटा:

व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (सीएनएनएस) और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (एनएफएचएस), बताते हैं कि इसके बारे में:
भारत में पांच साल से कम उम्र के एक तिहाई बच्चे अविकसित हैं।
उनमें से एक तिहाई कम वजन के हैं।
10 में से लगभग दो बच्चे पोषक रूप से बर्बाद हो जाते हैं।
कई बच्चे मल्टीपल एंथ्रोपोमेट्रिक डेफिसिट से पीड़ित हैं।
सीएनएनएस अधिक वजन, मोटापे और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की उभरती समस्याओं पर भी प्रकाश डालता है।
COVID-19 का प्रभाव:

स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाएं, जैसे आंगनवाड़ी केंद्र, पोषण पुनर्वास केंद्र, और ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण दिवस (वीएचएसएनडी) बाधित हो गए थे।
स्कूलों में बच्चों को आयरन और फोलिक एसिड की गोलियों का वितरण काफी कम कर दिया गया था, और स्कूलों में पोषण पर जागरूकता अभियान निलंबित कर दिया गया था।
मार्च 2018 में पोषण अभियान के शुभारंभ ने पोषण पर राष्ट्रीय विकास के एजेंडे पर फिर से ध्यान केंद्रित किया। हालांकि, महामारी के साथ, कुपोषण बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है, और अतीत में की गई प्रगति के कुछ हिस्से पूर्ववत हो सकते हैं।
जैसे-जैसे महामारी की अवधि लंबी होगी, खाद्य असुरक्षा और पोषण संबंधी चुनौतियां भी तेज होंगी।
महामारी से उत्पन्न खाद्य असुरक्षा के कारण परिवार कम पोषक मूल्य वाले सस्ते भोजन की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे बच्चों के संज्ञानात्मक विकास पर दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
COVID-19 से संबंधित प्राथमिकताएं पोषण और पोषण सुरक्षा प्रतिक्रियाओं के वितरण और वित्तपोषण के लिए खतरा हो सकती हैं।
आगे का रास्ता:

ये ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

खाद्य, आय और पोषण सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए राष्ट्रीय से लेकर जिले तक सभी स्तरों पर मजबूत नेतृत्व आवश्यक है।
दो साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और किशोर लड़कियों पर विशेष ध्यान देने के साथ, आवश्यक साक्ष्य-आधारित पोषण सेवाओं की निर्बाध, सार्वभौमिक, समय पर और उच्च गुणवत्ता वाली कवरेज सुनिश्चित की जानी चाहिए, जो कि महत्वपूर्ण विकास अवधि हैं।
महामारी COVID-19 दिशानिर्देशों और सेवा वितरण तंत्र में नवाचारों के अनुकूल रणनीतियों की मांग करती है।
उच्च प्रभाव वाले हस्तक्षेपों के वितरण को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त वित्तपोषण की आवश्यकता है, और विशेष रूप से कमजोर जनसंख्या समूहों के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।
स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे पोषण को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाले बहुक्षेत्रीय हस्तक्षेपों को प्रभावी ढंग से वितरित करने की आवश्यकता है। प्रवासी मजदूरों और शहरी गरीबों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
पोषण को विकास के प्रमुख संकेतक के रूप में बनाए रखने की आवश्यकता है।

(AIR Debate) 17 September 2021

आकाशवाणी समसामयिकी चर्चा (17, सितंबर 2021):

  • चर्चा का विषय – एयर इंडिया में विनिवेश को मिल रही गति पर चर्चा
  • सहभागी: ए. के. भट्टाचार्य (आर्थिक विश्लेषक), कमल कुमार प्रजापति (आकाशवाणी संवाददाता)

नीति आयोग ने भारत में शहरी नियोजन क्षमता बढाने के उपायों पर रिपोर्ट जारी की

नीति आयोग ने भारत में शहरी नियोजन क्षमता बढाने के उपायों पर रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट का नाम है- भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधार। नीति आयोग के उपाध्‍यक्ष डॉ० राजीव कुमार, मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत और विशेष सचिव डॉ० के राजेश्‍वर राव ने आज यह रिपोर्ट जारी की। इसे नीति आयोग ने सम्‍बंधित मंत्रालयों तथा शहरी और क्षेत्रीय नियोजन के क्षेत्र में जाने-माने विशेषज्ञों के सहयोग से तैयार किया है। रिपोर्ट में पिछले नौ महीनों के दौरान गहन विचार विमर्श के परिणाम शामिल किए गए हैं।

 

इस अवसर पर नीति आयोग के उपाध्‍यक्ष डॉक्‍टर राजीव कुमार ने कहा कि आगामी वर्षों में शहरी भारत, भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि की ताकत बनेगा। उन्‍होंने कहा कि कस्‍बा नियोजन सहित शहरी चुनौतियों से निपटने के लिए देश में नीतियों पर ज्‍यादा ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है।

 

नी‍ति आयोग के मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने कहा कि शहरीकरण भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की संचालन शक्ति है और देश बदलाव के मुख्‍य बिंदु पर पहुंच गया है। कुछ दशकों में आधे देश का शहरीकरण हो जाएगा।

 

इस रिपोर्ट में भारत में शहरी नियोजन क्षमता की रूकावटों को दूर करने के लिए अनेक सुझाव दिए गए हैं। इनमें स्‍वास्‍थ्‍य के नियोजन, शहरी शासन की पुनर्संरचना और कस्‍बा तथा देश नियोजन अधिनियमों में संशोधन शामिल है।

रक्षा मंत्रालय के खरीद प्रकोष्‍ठ ने मानक संचालन प्रक्रिया- एसओपी जारी की

क्षा मंत्रालय के खरीद प्रकोष्‍ठ ने मानक संचालन प्रक्रिया- एसओपी जारी की है। इससे खरीद प्रक्रिया में स्‍पष्‍टता आएगी। अब निविदादाताओं द्वारा अंतरराष्‍ट्रीय बैंकों से गारंटी जमा करने के सम्‍बंध में खरीददारों को नई प्रक्रिया का पालन करना होगा। इससे विदेशी बैंकों की बैंक गारंटी वाले खरीद के मामलों में अनुबंध को समय से सम्‍पन्‍न किया जा सकेगा।

 

अंतरराष्‍ट्रीय बैंकों से बैंक गारंटी के लिए रक्षा खरीद प्रक्रिया में खरीददार को यह अधिकार दिया गया है कि वह  आवश्‍यक होने पर भारतीय बैंक से बैंक गारंटी की पुष्टि कर सकें। इसका खर्च निविदादाता को वहन करना होता है।

 

एसओपी में यह उल्‍लेख किया गया है कि ऐसी बैंक गारंटी की पुष्टि की आवश्‍यकता के सम्‍बंध में नई दिल्‍ली के संसद मार्ग पर स्थित एसबीआई बैंक की सलाह लेने के लिए खरीददार को किन चरणों का पालन करना होगा।