Search for:
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के 650 ग्लेशियरों पर मंडरा रहा खतरा, वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के 650 ग्लेशियरों पर मंडरा रहा खतरा, वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता

Publish Date:Fri, 21 Jun 2019 10:16 AM (IST)
undefined
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के ग्लेशियर लगातार पिघलते जा रहे हैं। इससे पानी में इजाफा हो रहा है और ग्लेशियर खत्म होते जा रहे हैं। ये एक गंभीर स्थिति है।

नई दिल्ली[जागरण स्पेशल]। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के 650 ग्लेशियरों पर खतरा मंडरा रहा है, ये ग्लेशियर लगातार पिघलते जा रहे हैं। यदि इसी रफ्तार से ग्लेशियर पिघलते रहे तो आने वाले कुछ सालों में हिमालय के अधिकतर ग्लेशियर पानी में तब्दील हो जाएंगे। बढ़ते पानी की वजह से जमीन पर रहने वालों को इससे अधिक समस्या का सामना करना पड़ेगा। वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन का पता लगाने के लिए अध्ययन किया। 40 साल के उपग्रह डेटा पर आधारित इस तरह के एक अध्ययन में ये बातें सामने आई हैं।

साइंस एडवांसेज में बुधवार को प्रकाशित अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया कि हिमालय के ग्लेशियर साल 2000 के बाद से हर साल 1.5 फीट बर्फ खो रहे हैं। इस तरह से देखा जाए तो हिमालय की बर्फ पिछले 25 साल की अवधि की तुलना में कहीं अधिक तेज गति से पिघल रही है। हाल के वर्षों में, ग्लेशियरों से एक वर्ष में इतनी बर्फ पिघल चुकी है, इससे लगभग 8 बिलियन टन पानी पैदा हो चुका है। अध्ययन के लेखकों ने इसे 3.2 मिलियन ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल द्वारा आयोजित पानी की मात्रा के बराबर बताया।

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग के खतरे की ओर इशारा किया है। अभी तक ग्लेशियरों को जल मीनार कहा जाता था। इसी के साथ जिन जगहों पर सूखा पड़ता था वहां के लोगों के लिए इन ग्लेशियरों को बीमा पॉलिसी माना जाता था मगर जिस तरह से ये ग्लेशियर पिघल रहे हैं उससे खतरा दुगुना हो रहा है। फरवरी में, इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट द्वारा निर्मित एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि सदी के अंत तक हिमालय अपनी बर्फ के एक तिहाई हिस्से तक को खो सकता है।

पिछले 150 वर्षों में औसत वैश्विक तापमान पहले ही 1 डिग्री बढ़ गया है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। मई में नेचर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि हिमालय के ग्लेशियर गर्मियों में तेजी से पिघल रहे हैं क्योंकि वे सर्दियों में बर्फ द्वारा फिर से बनाए जा रहे हैं।

गर्म मौसम में पहाड़ों से पिघलने वाली बर्फ का पानी नदियों में आकर मिल जाता है जिसके कारण वहां पर पानी के लेवल में इजाफा हो रहा है। अभी तक इन्हीं ग्लेशियरों से निकलकर आने वाले पानी से फसलों की सिंचाई की जा रही है। इनसे पीने का पानी भी मिलता है और उनसे सिंचाई भी की जा रही है। ग्लेशियरों का पीछे हटना बढ़ते वैश्विक तापमान के सबसे भयावह परिणामों में से एक है। दुनिया भर में, लुप्त हो रहे ग्लेशियरों का मतलब लोगों, पशुधन और फसलों के लिए आने वाले समय में पानी की मात्रा एकदम कम हो जाएगी।

हिमालय में, ग्लेशियरों के नष्ट होने से दो गंभीर खतरे हैं। कम समय में पिघलने वाले ग्लेशियर पहाड़ पर ही छोटे-छोटे तालाब बनाते हैं, यदि इनमें पानी की मात्रा बढ़ेगी तो इससे अधिक नुकसान होगा। यहां बसे छोटे गांव आदि खत्म हो जाएंगे। लंबी अवधि में ग्लेशियर की बर्फ के नुकसान का मतलब है कि एशिया के भविष्य के पानी का नुकसान। यदि इन ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने की दिशा में कदम नहीं उठाए गए तो लंबे समय में अत्यधिक गर्मी और सूखे के समय पानी मुहैया करा पाना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा।

कोलंबिया विश्वविद्यालय में लामोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में नवीनतम अध्ययन, हाल ही में अघोषित यू.एस. जासूस उपग्रह डेटा सहित हिमालय के 6000 किलोमीटर या 600 मील से अधिक की दूरी पर 650 ग्लेशियरों के उपग्रह चित्रों के विश्लेषण पर निर्भर है। शोधकर्ताओं ने छवियों को 3 डी मॉडल में बदल दिया, जोकि ग्लेशियरों के क्षेत्र और मात्रा में परिवर्तन दिखाते हैं।

उन्होंने पाया कि 1975 से 2000 तक, पूरे क्षेत्र के ग्लेशियर हर साल 10 इंच बर्फ खो देते हैं। 2000 में इनका पिघलना शुरू हुआ था। अब इनेक नुकसान की दर दोगुनी हो गई, प्रत्येक वर्ष लगभग 20 इंच बर्फ पिघलकर पानी हो रही है। अध्ययन में यह भी निष्कर्ष निकला है। ईंधन से जलने से बर्फ के पिघलने में योगदान होता है। इन ग्लेशियरों के पिघलने का बड़ा कारक तापमान का बढ़ना था जबकि विशाल पर्वत श्रृंखला में तापमान औसत से अधिक था। पहले के वर्षों की तुलना में 2000 और 2016 के बीच काफी तेजी ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिसका नतीजा दिख रहा है। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से वैज्ञानिक काफी चिंतित है।