संसद में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक, 2018 पारित

संसद में 09 अगस्त 2018 को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक, 2018 पारित हो गया.

लोकसभा में 6 अगस्‍त 2018 को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक पारित हुआ था.

प्राथमिकी दर्ज करने से पहले आरंभिक जांच कराने की जरूरत को समाप्‍त करने अथवा किसी आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले किसी अधिकारी से मंजूरी लेने और अधिनियम की धारा 18 के प्रावधानों को बहाल करने के लिए धारा 18ए को इसमें शामिल किया गया है.

अधिनियम में शामिल की गई धारा 18ए:

पीओए अधिनियम के प्रयोजन के लिए: किसी भी व्‍यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले आरंभिक जांच कराने की जरूरत नहीं होगी.

किसी भी ऐसे व्‍यक्ति की गिरफ्तारी के लिए, यदि आवश्‍यक हो, जांच अधिकारी को मंजूरी लेने की आवश्‍यकता नहीं होगी, जिसके खिलाफ पीओए अधिनियम के तहत कोई अपराध करने का आरोप लगाया गया है और पीओए अधिनियम अथवा फौजदारी प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत उल्लिखित प्रक्रिया के अलावा कोई और प्रक्रिया लागू नहीं होगी.

किसी भी अदालत का चाहे कोई भी फैसला अथवा ऑर्डर या निर्देश हो, लेकिन संहिता की धारा 438 का प्रावधान इस अधिनियम के तहत किसी मामले पर लागू नहीं होगा.

विधेयक से संबंधित तथ्य:

•    इस विधेयक में न सिर्फ पिछले कड़े प्रावधानों को वापस जोड़ा गया है बल्कि और ज्यादा सख्त नियमों को भी इसमें सम्मिलित किया गया है.

•    सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, लेकिन न्याय मिलने में देरी ना हो इसलिए विधेयक के जरिए कानून में बदलाव किया जा रहा है.

•    अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ होनेवाले अत्याचारों को रोकने के लिए बना कानून पहले की तरह ही सख्त रहेगा.

•    इस विधेयक के जरिए न सिर्फ इस मामले में पहले से बना कानून बहाल होगा बल्कि इसे और सख्त बनाया जा सकेगा.

•    जिस व्यक्ति पर एससी-एसटी कानून का अभियोग लगा हो तो उस पर कोई और प्रक्रिया कानून लागू नहीं होगा.

•    इस विधेयक के कानून बनने के बाद दलितों पर अत्याचार के मामले दर्ज करने से पहले पुलिस को किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी और मुजरिम को अग्रिम जमानत भी नहीं मिलेगी.

•    प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस जांच की भी जरूरत नहीं होगी और पुलिस को सूचना मिलने पर तुरंत प्राथमिकी दर्ज करनी पड़ेगी.

•    किसी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर रजिस्टर करने के लिए प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं होगी.

•    ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले जांच अधिकारी को किसी अनुमोदन की जरूरत नहीं होगी.

पृष्ठभूमि:

सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 को एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून के कुछ सख्त प्रावधानों को हटा दिया था जिसके कारण इससे जुड़े मामलों में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लग गयी थी और प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच जरूरी हो गयी थी.

दलित संगठनों ने सरकार से कानून को फिर से बहाल करने की मांग की थी, जिसके बाद सरकार ये कानून लेकर आई है. इस कानून में जो बदलाव किए गए हैं उसके अनुसार पहले एससी-एसटी कानून के दायरे में 22 श्रेणी के अपराध आते थे, लेकिन अब इसमें 25 अन्य अपराधों को शामिल करके कानून काफी सख्त बनाया जा रहा है.