बेरोजगारी पर हो बात

बेरोजगारी पर हो बात

यह रिपोर्ट सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) द्वारा हर चार महीने पर 1,60,000 परिवारों के बीच किए गए सर्वेक्षण के अध्ययन पर आधारित है।

सांकेतिक तस्वीर
यह वाकई चिंता का विषय है कि नोटबंदी के बाद बीते दो वर्षों में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 50 लाख लोगों ने अपना रोजगार खो दिया है। यह जानकारी बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एंप्लॉयमेंट (सीएसई) द्वारा मंगलवार को जारी रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2019’ में दी गई है। यह रिपोर्ट सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) द्वारा हर चार महीने पर 1,60,000 परिवारों के बीच किए गए सर्वेक्षण के अध्ययन पर आधारित है।

सीएसई के अध्यक्ष और रिपोर्ट के मुख्य लेखक प्रो. अमित बसोले का कहना है कि कहीं और नौकरियां भले ही बढ़ी हों और कुछ लोगों को शायद उसका लाभ भी मिला हो, लेकिन इतना तय है कि पचास लाख लोगों ने अपनी नौकरियां खोई हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। रिपोर्ट में ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है कि लोगों के बेरोजगार होने की मुख्य वजह नोटबंदी है। उपलब्ध आंकड़ों से दोनों के बीच कोई सीधा रिश्ता नहीं जुड़ता। रिपोर्ट के अनुसार नौकरी खोने वाले 50 लाख पुरुषों में ज्यादातर कम शिक्षित हैं। मुश्किल यह है कि बेरोजगारी पर किसी भी बातचीत को केंद्र सरकार अपने ऊपर हमले के रूप में लेती है। पिछले दिनों बेरोजगारी को लेकर एनएसएसओ के आंकड़ों पर काफी विवाद हुआ और सरकार ने उन्हें आधिकारिक रूप से जारी ही नहीं किया। यह बात मीडिया के माध्यम से सामने आई कि एनएसएसओ ने 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत आंकी है जो पिछले 45 साल का सर्वोच्च स्तर है। इसके बाद नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने हड़बड़ी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर कहा कि ये आंकड़े अंतिम नहीं हैं क्योंकि सर्वेक्षण अभी पूरा नहीं हुआ है। लेकिन इसके बाद भी सरकार ने स्पष्ट नहीं किया कि बेरोजगारी पर सरकारी आंकड़े हैं क्या?

सत्तारूढ़ दल ने विपक्ष पर बेरोजगारी के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने और उनपर राजनीति करने का आरोप लगाया। बेरोजगारी लोगों के लिए जीवन-मृत्यु का मसला है और इसपर बयानबाजी से बचा जाना चाहिए लेकिन इसपर कोई बात ही न करना इसे और खतरनाक बना सकता है। बेरोजगारी को सिर्फ सरकारी नीतियों की विफलता के रूप में देखना एक तरह का सरलीकरण है। अर्थव्यवस्था के विविध क्षेत्रों का उतार-चढ़ाव पूरी दुनिया से जुड़ा होता है। एक समय भारत में बीपीओ सेक्टर तेजी से फला-फूला लेकिन फिर विभिन्न वजहों से इसमें शिथिलता आ गई। निर्यात में आ रही कमी ने भी समस्या बढ़ाई है। रोजगार उपलब्ध कराने में का सबसे अधिक योगदान मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का होता है, जो काफी समय से ढीला चल रहा है। बेरोजगारी दूर करने के लिए चीन की तरह हमें भी श्रम प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देना होगा और कुछ ऐसा करना होगा कि इनमें उद्योगपतियों की खास दिलचस्पी पैदा हो। लेकिन यह सब तभी होगा, जब सरकार यह माने कि अभी के भारत में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है।