News Clipping on 1-06-2018

किसान को मुक्त कर वॉलमार्ट का फायदा उठाएं,

अमेरिका की दो दिग्गज कंपनियों की होड़ का पूरा लाभ कृषि उपज मंडियों को खत्म करने से ही मिलेगा

गुरचरण दास

वॉलमार्ट द्वारा फ्लिपकार्ट के अधिग्रहण के शोर में दुनिया की सबसे बड़े वाणिज्यिक सौदे का महत्व लगभग हर किसी से छूट गया। सुर्खियां तो एमेजॉन और वॉलमार्ट के बीच होने वाले संघर्ष बयां कर रही थीं। न्यूज़ चैनल बेंगलुरू के दो युवाओं की सिंड्रैला कथा कहने लगे कि कैसे उन्होंने 140 हजार करोड़ रुपए की कंपनी निर्मित की और कई कर्मचारियों को करोड़पति बना दिया। अर्थशास्त्रियों ने इसमें भारत का युग आते देखा कि चीन की तरह भारत भी अब सबसे शक्तिशाली वैश्विक सप्लाई चेन में शामिल हो जाएगा। निर्यात को बल मिलेगा, नया विदेशी निवेश व रोजगार बढ़ेगा। सौदे पर मिलने वाले कैपिटल गेन्स टैक्स को लेकर विभागों की लार टपक रही होगी।

यह सब सही है लेकिन, इसमें पूरी कहानी नहीं आती। हां, 10 मई 2018 भारतीय आर्थिक इतिहास में ऐतिहासिक मील का पत्थर है, जब दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी वॉलमार्ट ने भारत की सबसे बड़ी ऑनलाइन कंपनी फ्लिपकार्ट में 77 फीसदी हिस्सा खरीदने के लिए 16 अरब डॉलर देने की घोषणा की। यह उस कंपनी के लिए बहुत बड़ी रकम थी, जिसके अगले पांच साल में भी लाभ-हानि बराबर पर आने की उम्मीद नहीं थी। सौदे के बाद वॉलमार्ट के शेयर गिर गए। वॉलमार्ट को एमेजॉन की तुलना में जो स्पर्धात्मक बढ़त प्राप्त है उससे भारत को मिलने वाला फायदा पर्यवेक्षक देख नहीं सके : खेती का रूपांतरण, किराना दुकानों का उन्नत होना और नौकरियां।

इतने वर्षों में वॉलमार्ट ने 28 देशों में कोल्ड चेन बना ली है। इस तरह वह ताजी, उच्च गुणवत्ता वाली सब्जियां, फल और अन्य कृषि उत्पाद शहरों को डिलिवर करने के काबिल हुई है। उसने खेत पर खाद्यान्न की बर्बादी रोकी है, जो अनुमान के मुताबिक एक-तिहाई है। न तो एमेजॉन और न फ्लिपकार्ट में यह क्षमता है और न रिलायन्स इसे दोहरा सकी जब इसने ‘रिलायन्स फ्रेश’ के रूप में इस क्षेत्र में कदम रखा। पिछले दस वर्षों से वॉलमार्ट भारत में 21 बेस्ट प्राइस थोक के स्टोर चलाती रही है, जिससे वह 10 लाख से ज्यादा खेरची विक्रेताओं को सप्लाई करती रही है। अब उसकी योजना उनमें से कई को कृषि उत्पादों को घरों में पहुंचाने की अंतिम छोर की डिलिवरी के लिए ‘पार्टनर’ बनाने की है। इस प्रक्रिया में वह किराना दुकानों के इन्वेंटरी मैनेजमेंट, डिजिटल पेमेंट और लॉजिस्टिक टेक्नोलॉजी के हुनर को उन्नत बनाएगी। दिग्गज कंपनियों की इस लड़ाई में सच्चा फायदा तो भारतीय कृषि और किराना दुकानों के रूपांतरण के रूप में होने वाला है।

एक प्रतिष्ठित मैनेजमेंट कंसल्टेंसी फर्म ने अनुमान लगाया है कि वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट की सफलता के लिए अच्छी-खासी नई पूंजी की जरूरत होगी और वॉलमार्ट ने पहले ही पांच अरब डॉलर लगाने की घोषणा की है। इससे मोटेतौर पर एक करोड़ जॉब पैदा होंगे। जॉब का यही आंकड़ा वॉलमार्ट के सीईओ ने बार-बार दोहराया। कंपनी ने जब से अपना 97 फीसदी सामान भारतीय उत्पादकों से लेना शुरू किया है और अपनी ग्लोबल सप्लाई चेन को चार से पांच अरब डॉलर का सामान बेचना शुरू किया है तो उसने पहले ही मध्यम और लुघ व्यवसायों के क्षेत्र में काफी जॉब निर्मित किए हैं। अब निर्यात में यह ट्रेंड तेजी से बढ़ेगा। मेक्सिको और चीन जैसे परिपक्व बाजारों में वॉलमार्ट 95 फीसदी सामान स्थानीय बाजार से लेती है और इन देशों से अच्छी-खासी मात्रा में निर्यात करती है। इस तरह एक करोड़ नए जॉब का अनुमान वेंडरों से निर्मित होने वाले परोक्ष जॉब और कोल्ड चेन लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग और डिस्ट्रिब्युशन में होने वाले प्रत्यक्ष जॉब पर आधारित है।

कई बार मैं सोचता हूं कि जब किसान को आलू 4-5 रुपए किलो में बेचना पड़ता है तो मैं क्यों एक किलो आलू के लिए 20 रुपए चुकाता हूं। मुझे अहसास हुआ कि मेरा आलू मंडी से किराना दुकान तक यात्रा करता है कि इस शृंखला में हर व्यक्ति अपना हिस्सा लेता है। इसके बाद भी 15 रुपए का फर्क बहुत ज्यादा है। विश्लेषण बताते हैं कि जिन देशों में वॉलमार्ट जैसे वैश्विक सुपर मार्केट काम करते हैं वहां यह फर्क काफी कम है, क्योंकि यहां के किसानों का सुपरमार्केट से लंबी अवधि का अनुबंध होता है। वॉलमार्ट किसान को ऊंची कीमत देकर उपभोक्ता को कम कीमत की पेशकश कर सकती है, क्योंकि इसने बिचौलियों को हटा दिया है।

सही है कि वितरण की शृंखला छोटी होने पर मंडी में आढ़तिये और थोक विक्रेता खत्म हो जाएंगे। लेकिन, मैं उन पर आंसू नहीं बहाऊंगा, क्योंकि वे मंडी में भ्रष्ट कार्टेल चलाते हैं, जो किसानों का शोषण करता है। आम किसान अपनी फसल लेता है, बैलगाड़ी पर लादता है, 20 से 50 किलोमीटर जाकर मंडी में ले जाता है, जहां उसे आमतौर पर कार्टेल द्वारा तय की गई मामूली कीमत पर बिक्री करनी पड़ती है। आढ़तिये जानते हैं कि उपज खराब हो जाएगी और किसान इसे वापस नहीं ले जा सकता। इस भ्रष्ट व्यवस्था को देखकर ही केंद्र सरकार ने कृषि उपज मंडियों (एपीएमसी) को खत्म करने वाला मॉडल रिफॉर्म एक्ट बनाया है। लेकिन, कुछ ही राज्यों (महाराष्ट्र व बिहार) ने इसे लागू किया है। वजह यह है कि भ्रष्ट एपीएमसी नेताओं को चुनाव के लिए काला धन देती हैं। इनाम पोर्टल से रोज किसानों को विभिन्न मंडियों की जानकारी दी जानी थी ताकि वे उस मंडी को बेच सके, जो उन्हें सर्वोत्तम कीमत दे। लेकिन, कई सरकारी कार्यक्रमों की तरह यह शुरू नहीं हो सका है।

इसके विपरीत वॉलमार्ट जैसे वैश्विक रिटेलर कोल्ड स्टोरेज, वातानुकूलित ट्रक और ग्रेडिंग की सुविधाओं में निवेश करते हैं। किसानों को फूड प्रोसेसरों से जोड़ते हैं। इससे फसल लेने के बाद का नुकसान नहीं होता और किसानों की आय बढ़ती है। एपीएमसी कार्टेल की पैठ देखते हुए वॉलमार्ट के प्रवेश का लाभ कुछ ही राज्यों के किसानों को मिल पाएगा। वादे के बावजूद सरकारें कोल्ड स्टोरेज की चैन नहीं बना सकी हैं। यदि मोदी किसान की आय दोगुनी करने के प्रति गंभीर हैं तो उन्हें फैसला करना होगा कि क्या वे फोन उठाकर भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों से कहेंगे कि वे एपीएमसी खत्म करें या वे राजनीतिक दलों को पैसा देने वाले भ्रष्ट कार्टेल को स्वीकार करेंगे। यदि वे भ्रष्टाचार खत्म करने के अपने चुनावी वादे पर कायम हैं तो उन्हें सुधार पर जोर देकर किसान को एपीएमसी राज से मुक्त करना होगा ताकि वे अपनी मर्जी से उपज किसी को भी बेच सके। इस तरह से ही भारत दिग्गज कंपनियों की आगामी होड़ का पूरा फायदा ले सकेगा।